‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी- जेपीसी अध्यक्ष पीपी चौधरी..
उत्तराखंड: एक राष्ट्र-एक चुनाव के मुद्दे पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने इस व्यवस्था को लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक करार दिया है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली से शासन की स्थिरता, नीतियों का बेहतर क्रियान्वयन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकेगी। पीपी चौधरी का कहना हैं कि एक साथ चुनाव कराने से बार-बार चुनावों पर होने वाले व्यय और समय की बचत होगी, जिससे संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग हो सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अलग-अलग समय पर चुनाव होने से राजनीतिक अस्थिरता और आचार संहिता के कारण नीति-निर्माण में रुकावटें आती हैं।
जेपीसी अध्यक्ष ने इस पहल का विरोध करने वालों की आलोचना करते हुए कहा कि उनके तर्क स्पष्ट नहीं हैं और वे राष्ट्रीय हित की बजाय दलगत राजनीति को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह समय है कि देशहित में एक समन्वित और दीर्घकालिक चुनाव प्रणाली को अपनाया जाए। जेपीसी जल्द ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने की तैयारी में है। समिति विभिन्न पक्षकारों से चर्चा कर संविधान, चुनाव आयोग की भूमिका, और कानूनी पहलुओं को लेकर सिफारिशें तैयार कर रही है।
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने अपने दो दिवसीय उत्तराखंड दौरे के दौरान बुधवार को मसूरी रोड स्थित एक होटल में राजनीतिक दलों और सार्वजनिक उपक्रमों के प्रतिनिधियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया। इस दौरान समिति ने एनटीपीसी, एनएचपीसी, टीएचडीसी और आरईसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अधिकारियों की भी राय जानी। बैठक का उद्देश्य देशभर से विभिन्न वर्गों और हितधारकों की रचनात्मक राय एकत्र करना था, ताकि समिति एक राष्ट्र-एक चुनाव को लेकर संतुलित और व्यवहारिक सिफारिशें तैयार कर सके। बैठक के उपरांत मीडिया से बातचीत में समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने कहा कि देश में वर्ष 1952 से 1967 तक करीब 15 वर्षों तक एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक कराए गए थे।
उस दौरान कोई अराजकता नहीं फैली। इसके बाद जब यह सिलसिला टूटा, तब चुनावों का चक्र असंतुलित हो गया। उन्होंने यह भी कहा कि जिन राज्यों में आज भी लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाते हैं, वे इस व्यवस्था से संतुष्ट हैं। इसके विपरीत जो लोग या दल इस व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं, वे अपने तर्क स्पष्ट रूप से सामने नहीं रख पा रहे हैं। चौधरी ने कहा कि एक साथ चुनाव होने पर सबसे बड़ा फायदा लोकतंत्र की मजबूती का होगा। मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सोचना है कि हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहें तो हमारे मतदाताओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि बार-बार चुनाव, फ्री राशन, फ्री बिजली जैसे मुद्दों पर इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण केस में सुप्रीम कोर्ट फ्री एंड फेयर इलेक्शन के खिलाफ मान चुका है। वोटर को राशन नहीं बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य का प्रलोभन देना चाहिए। उन्होंने कहा कि गरीब आदमी मजबूत होगा तो हमारा देश मजबूत होगा। प्रधानमंत्री की यही सोच है, तभी भारत विकसित बनेगा।
जेपीसी ने सुबह राज्य के मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन, गृह, वित्त, विधि और शिक्षा विभागों के प्रमुखों, तथा पुलिस महानिदेशक के साथ बैठक की। इस सत्र में एक साथ चुनावों के प्रशासनिक, विधिक और व्यावहारिक पहलुओं पर गहन विमर्श किया। दोपहर के सत्र में समिति की बैठक बार काउंसिल के पदाधिकारियों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और आईआईटी रुड़की के प्रतिनिधियों के साथ होगी। इस दौरान समिति शिक्षाविदों और कानूनी विशेषज्ञों से संवैधानिक व तकनीकी सुझाव प्राप्त करेगी, ताकि रिपोर्ट को अधिक व्यावहारिक और सर्वसमावेशी बनाया जा सके। इसके साथ ही स्थानीय स्तर की प्रमुख सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक हस्तियों के साथ भी एक विशेष सत्र आयोजित किया जाएगा, जिसमें उनकी राय और चिंताओं को समिति के समक्ष रखा जाएगा।
बुधवार को समिति सदस्यों ने दिन की शुरुआत योग अभ्यास से की। सुबह करीब एक घंटे तक चले योग सत्र में सदस्यों ने मानसिक और शारीरिक ताजगी के साथ दिन की शुरुआत की। जेपीसी अध्यक्ष पीपी चौधरी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि समिति का उद्देश्य राष्ट्रहित में एक स्थायी, व्यय-कुशल और स्थिर चुनाव प्रणाली के लिए सर्वपक्षीय राय को शामिल करना है। समिति की उत्तराखंड यात्रा इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
गढ़वाल सांसद एवं संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य अनिल बलूनी ने कहा कि वे सभी हितधारकों, राजनीतिक दलों, प्रशासनिक, स्थानीय सेलिब्रिटी से बातचीत कर रहे हैं। एक देश- एक चुनाव पर उनकी राय ली जा रही है। उत्तराखंड में भी इसी हिसाब से बातचीत हो रही है। उन्होंने कहा कि देश में उत्साह है। एक देश-एक चुनाव होगा तो उसके फायदे होंगे। केंद्र सरकार लोकतांत्रिक तरीके से काम करती है। जब बिल संसद में आया तो विपक्ष ने जेपीसी के गठन की मांग की। सरकार ने स्वीकार किया। अब जेपीसी पूरे देश में लोगों से बातचीत कर रही है। अन्य राज्यों में भी जाएंगे। उत्तराखंड राज्य के लिए एक देश एक चुनाव महत्वपूर्ण है। दुर्गम इलाके होने के कारण यहां ज्यादा संसाधन लगते हैं। समिति जहां जा रहा है वहां इसे लेकर सकारात्मक माहौल है। लोगों में इसे कानून बनाकर जल्द लागू करने की जिज्ञासा है।