June 25, 2025
रुद्रप्रयाग की महिलाओं के लिए पिरूल बना आजीविका का साधन, पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता की अनूठी पहल..

रुद्रप्रयाग की महिलाओं के लिए पिरूल बना आजीविका का साधन, पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता की अनूठी पहल..

 

उत्तराखंड: रुद्रप्रयाग में महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की दिशा में जिला प्रशासन द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। प्रशासन की पहल से न केवल महिलाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, बल्कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। इसी क्रम में जखोली ब्लॉक के जवाड़ी गांव में “जय रुद्रनाथ स्वायत्त सहकारिता” से जुड़ी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को पिरूल हस्तशिल्प का दस दिवसीय प्रशिक्षण निःशुल्क प्रदान किया गया है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना है। पिरूल, जो आमतौर पर जंगलों में गिरने वाली सूखी चीड़ की पत्तियां हैं, उससे आकर्षक हस्तशिल्प उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जिनकी बाजार में अच्छी मांग है। प्रशिक्षण से महिलाओं को न केवल हस्तकला कौशल प्राप्त होगा, बल्कि वे अपने बनाए उत्पादों को स्थानीय मेलों, बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बेचकर आर्थिक रूप से सशक्त हो सकेंगी। जिला प्रशासन का यह कदम महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों से न केवल रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है। यह प्रशिक्षण “पिरूल वीमेन” के नाम से प्रसिद्ध प्रशिक्षका श्रीमती मंजू आर. साह द्वारा प्रदान किया गया है, जो इस क्षेत्र में पिरूल आधारित हस्तशिल्प के जरिए महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण उद्यम वेग वृद्धि परियोजना (REAP) के अंतर्गत संचालित किया गया है।

REAP परियोजना के अंतर्गत आयोजित इस प्रशिक्षण के संबंध में जिला परियोजना प्रबंधक ब्रह्मकांत भट्ट ने जानकारी दी कि इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है और उन्हें स्थानीय संसाधनों के माध्यम से आजीविका के अवसरों से जोड़ना है। प्रशिक्षण में महिलाओं को पिरूल (चीड़ की सूखी पत्तियों) से विभिन्न उपयोगी और सजावटी उत्पाद बनाना सिखाया गया, जिनमें टोकरियाँ, सजावटी वस्तुएँ, पेन स्टैंड, गुलदस्ते, ट्रे और अन्य हस्तशिल्प उत्पाद शामिल हैं। यह हस्तकला न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि बाजार में इसकी अच्छी मांग भी है, जिससे महिलाओं को स्थायी आमदनी का स्रोत मिल सकता है। यह पहल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है, बल्कि इससे महिलाओं के आत्मविश्वास और सामाजिक भूमिका में भी सकारात्मक बदलाव आने की उम्मीद है। प्रशासन द्वारा ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करने की योजना है ताकि अधिक से अधिक महिलाएं इससे लाभान्वित हो सकें और रोजगार के साथ-साथ पारंपरिक शिल्प कौशल को भी संरक्षित किया जा सके।

इस संबंध में परियोजना के जिला प्रबंधक डॉ. ब्रह्मकांत भट्ट ने कहा कि प्रशिक्षण में महिलाओं को पिरूल (चीड़ की सूखी पत्तियाँ) से टोकरियाँ, सजावटी वस्तुएँ, पेन स्टैंड, गुलदस्ते, ट्रे आदि बनाने का कौशल सिखाया गया। उन्होंने कहा कि पिरूल जो अक्सर जंगलों में आग का कारण बनता है, अब महिलाओं के लिए आय का स्रोत बन सकता है। यह पहल पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद उपयोगी है। डॉ. भट्ट ने आगे कहा कि यह योजना पहाड़ की महिलाओं को घर बैठे रोजगार का अवसर देती है, जिससे वे अपने परिवार की आमदनी में योगदान दे सकती हैं। प्रशिक्षण के बाद महिलाएं अपने उत्पादों को स्थानीय बाजारों, श्री केदारनाथ यात्रा मार्ग और ऑनलाइन माध्यमों के जरिए भी विपणन कर सकेंगी। यह प्रयास न केवल स्थानीय हस्तशिल्प संस्कृति को प्रोत्साहन देता है, बल्कि जंगलों में आग की समस्या को कम करने में भी सहायक साबित हो सकता है। इससे महिलाएं पर्यावरण की रक्षा में भी भागीदार बनेंगी। जिला प्रशासन और REAP परियोजना की यह पहल महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण रोजगार और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ जोड़ने वाला एक प्रभावशाली मॉडल बन कर उभर रही है।

 

 

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