
तबादला प्रक्रिया में लापरवाही, तय समय में नहीं मांगे गए विकल्प, कानूनी पेंच में उलझे शिक्षक-कर्मचारी..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में शिक्षक और कर्मचारियों के तबादलों की प्रक्रिया की अंतिम तिथि 10 जून तय की गई है। यह तिथि तबादला अधिनियम (Transfer Act) के तहत निर्धारित की गई है, जिसके अनुसार सभी विभागों को इस तिथि तक तबादलों की कार्रवाई पूरी करनी होती है। हालांकि विभिन्न विभागों की तैयारी अब भी अधूरी है। कई विभागों ने अब तक स्थानीय स्तर पर प्रस्ताव तैयार नहीं किए हैं या ऑनलाइन प्रणाली में जरूरी सूचनाएं अपडेट नहीं की हैं। इससे अंदेशा जताया जा रहा है कि कई तबादले समय पर नहीं हो पाएंगे या प्रक्रिया जल्दबाजी में अधूरी रह जाएगी। सूत्रों के अनुसार शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य, लोक निर्माण और कुछ अन्य विभागों में अभी भी स्थानांतरण प्रस्तावों की छंटनी और अनुमोदन लंबित हैं। कर्मचारियों और शिक्षकों में इसको लेकर उलझन और नाराजगी देखी जा रही है विभागीय अधिकारियों का कहना है कि काम अंतिम चरण में है, लेकिन यदि तय तिथि तक कार्य पूर्ण नहीं होता है तो या तो शासन को तिथि बढ़ानी पड़ेगी, या फिर कुछ तबादले स्थगित करने पड़ सकते हैं। राज्य सरकार ने पहले ही स्पष्ट किया था कि तबादला नीति के अनुसार सभी स्थानांतरण पारदर्शी, डिजिटल और समयबद्ध तरीके से पूरे किए जाएंगे। अब देखना होगा कि अंतिम दिन पर प्रक्रिया कितनी सुचारु और पूरी होती है।
शिक्षक और सरकारी कर्मचारियों के तबादलों में पारदर्शिता और नियमबद्धता बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने तबादला एक्ट लागू किया है। इस एक्ट के तहत हर वर्ष सामान्य तबादलों के लिए एक स्पष्ट समय-सारणी तय की गई है। समय-सारणी के अनुसार तबादलों की प्रक्रिया हर साल मार्च माह से शुरू हो जानी चाहिए, ताकि 10 जून तक सभी स्थानांतरण कार्य समाप्त किए जा सकें। इसके तहत विभागों को सबसे पहले मानकों के अनुसार कार्यस्थलों का निर्धारण करना होता है, ताकि यह तय किया जा सके कि कहां आवश्यकता है और कहां से स्थानांतरण किया जाना है। हालांकि इस वर्ष कई विभागों में यह प्रक्रिया देरी से शुरू हुई या अधूरी रही, जिससे अंतिम तिथि तक सभी तबादले पूरे होने को लेकर संशय बना हुआ है। तबादला एक्ट का उद्देश्य है कि तबादले राजनीतिक दबाव या मनमर्जी से न होकर नीतिगत, पारदर्शी और संतुलित तरीके से हों। इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल, अंक आधारित प्रणाली और स्पष्ट मानक निर्धारित किए गए हैं।
शिक्षक और कर्मचारियों के सामान्य व अनिवार्य तबादलों के लिए तबादला एक्ट में स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। इसके तहत संबंधित विभागों को पात्र कर्मचारियों की सूची जारी करने के साथ-साथ खाली पदों का विवरण विभागीय वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होता है, ताकि पारदर्शिता बनी रहे। इसके साथ ही अनिवार्य तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों से अधिकतम 10 ऐच्छिक स्थानों के विकल्प 20 अप्रैल तक लिए जाने चाहिए थे। लेकिन वास्तविकता यह है कि अनेक विभागों ने न तो समय पर विकल्प मांगे, न ही पूरी सूची प्रकाशित की। कई विभागों ने तबादला एक्ट की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं अपनाया, जिससे अब स्थानांतरण संबंधी कार्य कानूनी पेचदगियों में उलझते नजर आ रहे हैं। नतीजतन कई कर्मचारियों को या तो अनुचित स्थानांतरण आदेशों का सामना करना पड़ रहा है, या फिर उनकी आवेदन की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। इस स्थिति से नाराज शिक्षक और कर्मचारी संगठनों ने सरकार से तबादला प्रक्रिया को समयबद्ध और नियमबद्ध करने की मांग की है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एक्ट के प्रावधानों का ठीक से अनुपालन नहीं हुआ, तो इससे न सिर्फ विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल उठेंगे, बल्कि न्यायिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है।