
उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है। राज्य के 12 जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में पंचायती राज विभाग द्वारा आरक्षण प्रस्तावों का अनंतिम प्रकाशन कर दिया गया है। इसके बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में आरक्षण व्यवस्था को लेकर तीन हजार से अधिक आपत्तियां दर्ज की गई हैं। अब इन आपत्तियों की सुनवाई 10 और 11 जून को जिलाधिकारियों द्वारा जिला स्तर पर की जा रही है। आरक्षण की अंतिम सूची 18 जून को प्रकाशित की जाएगी।
जनता की आपत्तियां: दोहराव, वर्गीकरण और पारदर्शिता पर सवाल
आपत्तियों का सबसे बड़ा कारण यह है कि कई ग्राम पंचायतों में लगातार दूसरी बार एक ही वर्ग (विशेषकर महिला या SC/ST/OBC) के लिए आरक्षण कर दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे लोकतंत्र के मूल भाव को ठेस पहुंचती है और योग्य उम्मीदवारों को बार-बार चुनाव से बाहर रहना पड़ता है।
कुछ लोगों ने अपने क्षेत्रों को सामान्य वर्ग में रखने की मांग की है, जबकि कुछ ने SC/ST या OBC वर्ग के लिए आरक्षित करने की अपील की है। ग्रामीणों का मानना है कि कई पंचायतों में जनसंख्या अनुपात को नज़रअंदाज़ करते हुए आरक्षण तय किया गया है।
विभाग की सफाई: शासनादेश के अनुसार की गई आरक्षण प्रक्रिया
पंचायती राज विभाग का कहना है कि पंचायतों का आरक्षण पूरी तरह शासनादेश और जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर किया गया है। सभी आपत्तियों पर निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से विचार किया जा रहा है। यदि किसी आपत्ति में दम पाया जाता है तो उसे आरक्षण सूची में शामिल अंतिम संशोधन में समायोजित किया जाएगा।
जिलावार स्थिति: ऊधमसिंह नगर सबसे आगे
राज्य भर में जिन जिलों से सर्वाधिक आपत्तियां प्राप्त हुई हैं, उनमें ऊधमसिंह नगर पहले स्थान पर है, जहां से 800 से अधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं। इसके अलावा:
- देहरादून: 302 आपत्तियां
- अल्मोड़ा: 294
- पिथौरागढ़: 277
- चंपावत: 337
- पौड़ी: 354
- चमोली: 213
- रुद्रप्रयाग: 90
- उत्तरकाशी: 383
- टिहरी: 297
इन सभी जिलों में संबंधित जिलाधिकारी स्वयं इन आपत्तियों की सुनवाई कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण प्रक्रिया किसी भी प्रकार के पूर्वग्रह से मुक्त हो और हर वर्ग को न्याय मिले।