आपदा प्रबंधन के लिए नई पहल, हरिद्वार, पंतनगर और औली में अत्याधुनिक रडार लगेंगे..
उत्तराखंड: उत्तराखंड में जल और मौसम संबंधी खतरों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राज्य में तीन नए अत्याधुनिक मौसम पूर्वानुमान रडार स्थापित किए जाएंगे। यह घोषणा केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यूकॉस्ट के विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन के दौरान की। ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में डॉ. सिंह ने कहा कि उत्तराखंड में जल-मौसम संबंधी खतरों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि आजकल फ्लैश फ्लड, बादल फटने की घटनाओं में तेजी आई है। इसके पीछे विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलना, ग्लेशियर लेक, फ्रेजाइल माउंटेन इकोसिस्टम, वनों की कटाई और मानवजनित गतिविधियाँ मुख्य कारण हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में पहले ही सुरकंडा, मुक्तेश्वर और लैंसडौन में रडार स्थापित किए जा चुके हैं।
अब हरिद्वार, पंतनगर और औली में तीन नए रडार लगाए जाएंगे, जो जलवायु और मौसम की मॉनिटरिंग में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। डॉ. सिंह ने यह भी जानकारी दी कि एनडीएमए की ओर से उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचाने की योजना जल्द लागू की जाएगी। इसका उद्देश्य राज्य के संवेदनशील जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस मौके पर ग्राफिक एरा समूह के अध्यक्ष डॉ. कमल घनशाला, सचिव आईटी नितेश झा, यूकॉस्ट महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत सहित कई विशेषज्ञ भी मौजूद थे। सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि इन नए रडारों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाया जा सकेगा, जिससे राज्य में आपदा प्रबंधन और बचाव कार्यों की दक्षता बढ़ेगी।
विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन में वीडियो संदेश के माध्यम से केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सिलक्यारा विजय अभियान देश की एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक उपलब्धि है। उन्होंने 25 वर्षों में उत्तराखंड द्वारा राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर हासिल की गई प्रगतिशील पहचान की सराहना की। मंत्री यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में और सीएम पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य ने अपनी प्रगति को नई दिशा दी है। उन्होंने यह भी जोर दिया कि आपदा प्रबंधन की दृष्टि से हिमालय को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार केंद्र में रखना आवश्यक है। भूपेंद्र यादव ने सम्मेलन में यह संदेश देते हुए कहा कि उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में आपदा प्रबंधन और जलवायु सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनका यह भी कहना था कि राज्य की भौगोलिक संवेदनशीलता और बढ़ते पर्यावरणीय खतरों को ध्यान में रखते हुए, सतत विकास और आपदा प्रबंधन रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना अनिवार्य है। सम्मेलन में मौजूद विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों ने इस पहल को सराहा और इसे राज्य और देश दोनों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बताया। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे अभियान न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी आपदा प्रबंधन के नए मानक स्थापित कर सकते हैं।
सीएम धामी ने हिमालय की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि यह केवल एक पर्वत श्रृंखला नहीं बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का जीवन स्रोत है। उन्होंने कहा कि हिमालय की नदियां, ग्लेशियर और जैव विविधता पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और राज्य व देश दोनों के लिए अनमोल संसाधन हैं। सीएम ने प्राकृतिक आपदाओं की चुनौतियों का सामना करने के लिए वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और क्षेत्र विशेषज्ञों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह समन्वय केवल उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के आपदा प्रबंधन ढांचे को मजबूत बनाने में मदद करेगा। धामी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया भर में लागू किए गए आपदा जोखिम न्यूनीकरण के 4P मंत्र Predict, Prevent, Prepare, Protect को भी याद दिलाया। उन्होंने बताया कि इस दृष्टिकोण के आधार पर एक 10 सूत्रीय एजेंडा तैयार किया गया है, जो आपदा प्रबंधन और जोखिम न्यूनीकरण के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होता है। इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों और रणनीतियों का पालन करके उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में आपदा प्रबंधन को और अधिक प्रभावी और टिकाऊ बनाया जा सकता है। विशेषज्ञों ने भी इस पहल की सराहना की और इसे हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के नए मानक स्थापित करने वाला कदम बताया।
